Treating anemia through Ayurveda

एनीमिया (खून की कमी) समाज में पाया जाने वाला एक सामान्य तथा विशिष्ट रोग

यह सभी आयुवर्ग की श्रेणी में आता है। सामान्य इसलिए क्योकि विशेषकर महिलाओँ व ३ बच्चों में देखा जाता है तथा विशिष्ट इसलिए क्योंकि कई रुगा महीनों तक इसकी औषधि लेने पर भी उनके हीमोग्लोवीन स्तर में अपेक्षित वृद्धि नहीं होती है।

 जहा तक एनीमिया के कारणो पर विचार करे तो हम इसके कारणों के तीन स्तर में विभक्त कर सकते हैं।

 प्रथम स्तर में वे कारण आते हैं जिनमें शरीर से रक्त का लंबे समय से बहाव हो रहा हो – उदाहरण (पाइत्स)आदि।

द्वितीय स्तर में वे सभी कारण आते है जिनमें शरीर अणुओं का सम्यक रूप से निर्माण नहीं कर पा रहा हो उदाहरण भोजन में लौह तत्व की कमी, भोजन में लोह तत्व होने पर भी आमाशय द्वारा लोह तत्व व मेचूरेशन पेत्कार्स (विटामिन बी एवंफौलिक यधिड) का आचूदुघग्ना नहीं होना तथा अस्थिमज्जा व एरीथ्रोपॉयटीन की सामान्य क्रियाशीलता में व्यवधान I

तृतीय स्तर पर वे सभी कारपा आते है जिनमें आरबीसौ (रक्ताणु) का किसी व्याधिवप्रा अत्यधिक मात्रा में विघटन होता हो उदाहरण मलेरिया का अपूर्ण उपचार,हैरीडिटरीसिधीसाययोस आदि।

एनीमिया से ग्रसित होने पर प्राय: शरीर के सभी संस्थान प्रभावित होते है जिनमें नाड़ी की गति का तीव्र होना (टेकीकार्डिया), शारीरिक कमजोरी, चलने पर श्वास फूलना, भोजन में अरुचि होना, चक्कर आना, हाथ पैरों में झिनझिनी होना, कानों में सार्थ-माये ध्वनि का आना, शरीर भारमें कमी होना आदि मुख्य लक्षण है।

 आधुनिक मतानुसार प्रयोगशालीय परीक्षण करने पर एक वयस्क पुरुष के रक्त में हीमोप्लोबिनकौमात्रा 13./ 100 एमएल से कम तथा स्त्री मे 11.5 गाम/ 100 एमएल से कम होने पर उन्हें एनीमिया से ग्रसित मानलिया जाता है। सामान्यत: वयस्क पुरुष में 50 मिली साम/ विग्लो तथा महिला में 38 मिलीग्राम / एँक्लो स्नेह की मावा होती है I

यदि औषधकलपो की बात करें तो उनके लौह यौगिकों हो मेचूरेरगन फेक्टर्स के साथ निश्चित मात्रा वे अवधि तक सेवन कराया जाता हैं साथ ही एनीमिया के लिएउतारदाबी कारणों को ज्ञात कर उनका भी साथ-साथ

उपचार किया जाता है। एक बात स्मरणीय है कि हमारे शरीर में लौह का अवपोषण फेरस के रूप में होता है एवं मास, एविड तथा विटामिन सी हमारे भोजन में उपस्थित फेश्कि रूप को फेरस रूप में परिवर्तित करने का कार्य करते है। अत: इनकी उपस्थिति में या खाली पेट यदि लौह के यौगिकों को लिया जाए तो

लोह का आजूप्रपा सम्यक होगा जहाँ तक आयुर्वेदिक दृष्टिकोण की बात है एनीमिया का समावेश हम शास्त्र में विस्तृत रूप से वर्णित पाडुरोब्बा के अंतर्गत कर सकते है। आयुर्वेद मतानुसार एनीमिया का कारण रजक पिल्ल व रक्ताग्नि की प्रहींनता है I

 जिसके चलते भोजन में लौह तत्त्व की सामान्य मात्रा रहने पर भी उससे रक्तधातु का निर्माण नहीं हो पाता है और समस्त शरीर में रुक्षता और शिथिलता बढ़ जाती हैं इसके अंतर्गत हम उपरोक्त वर्णित द्वितीय स्तर के कारणों का समावेश कर सकते हैं। इस रक्ताग्नि व रंजक पिल को सक्रिय करने हेतु ही सर्वप्रथम

एनीमिया के रोगी को स्नेहन, पश्चात तीक्ष्य वमन व विरेचन (उर्द्ध व अधोमार्ग से शरीर शुद्धि) कराने काविधान है। स्नेहन हेतु आयुर्वेद में पंचगव्य घृत, महातिक्त घृत, क्रल्यापा घृत है| दाक्षाघृत आहि का प्रयोग करते हैँ। उसी प्रकार वमन व किचन हेतु भी विशिष्ट कयों का उल्लेख प्राप्त है। वमन व विरेचन द्वारा शरीर का यथोचित संशोधन तथा रक्ताग्नि के सक्रिय हो जाने के पश्चात अनेक औषधियों को रोगी के अग्निबल (डायजेस्टिव केपिसेटी) को ध्यान में रखते हुए देते है I

 हरड़ या त्रिफला यर्थाथ (50 ५ एमएल) बगेणोंमूत्र ( 50 एमएल) के साथ प्रतिदिन प्रात:काल लें ।

गोमूत्र भावित मंडूरभस्म 250 एमजी को घृत च शहद में मिलाकर ले अथवा गोमूत्र भावित लोह भस्म को दूध के साथ ले।

 गुड़ व हस्ति श्री चूर्ण दोनो 10-30 ग्राम मिलाकर प्रतिदिन लें। इसे बाल्यावस्था से आस्रानी से दिया जा सकता हे।

 त्रिफला चूर्णसंगैलोय चूर्णनक्तुटकी चूर्णन- अडूत्ता नचूर्ण + धिरायता चूर्ण+नीम चूर्ण क्याथ 50 एमएल शहद मिलाकर प्रतिदिन ले I

 चूँकि हरे प्रतीक्षा शाक जैसे पालक,मेथी आदि में पर्याप्त मात्रा ने लोह तत्व मोजूद रहता है , अत: नित्य इनका सेवन भी बना चाहिए।

 उपरोक्त सभी उपचार एवं अन्य औषधियों  जैसे लोहासव, ताप्यादि लौह, नवायस लौह, घृकुमार्यासव आदि का सेवन योग्य चिकित्सक रु कीनिगरानी व सलाह अनुसार ही को अंतत:जिन एनीमिया के रोगियों को मात्र औषध योगों से अपेक्षित लाभ नहीं हो रहा हो, यहाँ आयुर्वेदीयविधिसेसंरगेघनवत्रानेकेपश्चात, उन्हों औषधियों का पुन: सेवन कराने पर निश्चित ही परिणाम में व्यापक अंतर देखा जा सकता है और यही परिणाम एनीमिया के संदर्भ में आयुर्वेद की मान्यता के प्रबल करता है I

 (Taken from Article of Dr Satish Agrawal published in June 2009)