Treating depression through Ayurveda

डिप्रेशन आधुनिक समाज में एक बहुप्रचलित मानसिक रोग की श्रेणी में आता है । संभवतः समय के साथ बढ़त्ते घरेलू क्विग्द , आपसी मतभेद , कार्य की व्यस्तता , दूसरो से आगे निकलने क्री होड़ अपने मनोनुकूल कार्य का न होना, दपत्तर में अपने से उपर बैठे अधिकारी से तीरस्कृत किया जाना, वढ़त्ते तनाव ब गलत संगत्त की वजह से किसी नशे का आदि हो जाना, बदलते समय के अनुरूप अपनी सोच में बदलाव न लाना , लंबे समय से किसी बीमारी से पीड़ित रहना तथा सबसे महत्त्वमूर्ण कारण अपने अन्दर की प्रतिभा तथा क्षमता को नजरअंदाज कर अपने आपको से हीन समझना डिप्रेशन के मुख्य कारणों में से है । बडे तो बड़े , बच्चे तथा युवा भी तेजी से इस रोग का शिक्या हो रहे  । पढाई का अत्यधिक बोझ, घर पर होमवर्क का ट टेन्षन, पिता द्धारा बच्चे को स्कूल में कम अंक मिलने पर डाटना,  बच्चो को अपनी रूचि अनुसार कार्य करने से रोकना आदि मुख्य कारण हैं । अंतत कारण अनेक पर बीमारी एक यानी डिप्रेशन । इससे ग्रसित व्यक्ति में ऊर्जा तथा उत्साह की कमी, कार्य के प्रति विमुखता, मूख तथा नींद में कमी , जीवन के प्रति नकारात्मक सोच, किसी भी नए कार्यं का जिम्मेदारी का निर्वाह करने में डर महसूस करना, शरीर भार में कमी डोना , शरीर में थकान व कहीँ भी दर्द का होना, एकाग्रता की कमी होना तथा कमी-कमी मन में आत्महत्या की भावना पनपना आदि इस बीमारी के मुख्य कारण है । कई बार शारीरिक लक्षण, मानसिक लक्षणों की अपेक्षा ज्यादा प्रबल तथा दृष्टिगोचर होते हैं।

 आधुनिक शास्त्र डिप्रेशन का कारण मस्तिष्क में सिरोटोनीन, नार-एड्रीनलीन तथा डोपामिन आदि न्यूरो ट्रांसमीटर की कमी मानता है अत इन्हें न्यूरो ट्रांसमीटर की सामान्य मात्रा को बनाए रखने वाली औषधियों जैसे ट्रायसायक्लिक वर्ग या स्फेसिफिक सिरोंसोनीन री- अपटेक इनहीबिटर वर्ग की दवाइयाँ मुख्य रूप से दी जाती है। इनके अपने फायदे व नुकसान हैं। जहाँ तक आयुर्वेद दृष्टिकोण की बात है, डिप्रेशन मुख्य रूप से वात दोष की अधिकता से होने वाला रोग है। इसके लिए शास्त्र में विभिन्न चिकित्सा विकल्प उपलब्ध हैं, जो प्रभावी होने के साथ-साथ पूर्णत: हानिरहित हैं। औषधियों के अंतर्गत ऐद्रो, त्राखपुप्पी, बचा, जतामासी, सर्पगंधा, त्तगर, आवासी, अभ्रक भस्म, साखवतारेद्ध, ब्राहांगै घृत, सारस्वत चूर्ण, बृहतवान चिंतामणि रस आदि प्रमुख हैं इसके अलावा शिरोधारा व नस्य का भी विधान है जिसके अंतर्गत औषधि क्वाथ को सिर पर तथा नासा में क्रश्या: डाला जाता है। साथ ही साथ मरीज से निम्म बातों का भी पालन कराएँ-

 1 – खाली रहने की स्थिति ने फालतू नहीं बैठें, अपितु उस समय में अपनी रुचि का कोई कार्यं या जिसी पत्रिका, पुस्तक आदि का वाचन कों अथवा अपने मित्रों के साथ किसी बौद्धिक विषय पर वार्तालाप करें।

2 – सामने वाले व्यक्ति की जो बात अच्छी न लगे, उसे नजरअंदाज कर दें। 1 रोज प्रात्त:याल अनुलोम-का ध्यान करें।

3 – अपनी गलतियों पर दुख करने की बजाए आगे से वे न हों, इसके लिए कटिबद्ध रहें। 1 यह मानका चलें कि विकट परिस्थितियों जीवन का अभिन्न अंग हैं।

 (Taken from Article of Dr Satish Agrawal in Sehat Magazine in January 2010)